mahabharat episode -1 (seasoin-1)
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mahabharata episode-1(seasoin-2) :- यहाँ से स्टार्ट होता है |
गंगा – चाहे मैं जो भी करूं आप मुझसे कभी कोई प्रश्न नहीं करेंगे |
शांतनु – हां ना तो मैं तुमसे कभी कोई प्रश्न नहीं करूंगा और ना ही कारण जानने की चेष्टा करूंगा |
गंगा – यदि आप ऐसा ना कर पाए तो मैं आपके पहले प्रश्न का उत्तर देने के बाद आपके जीवन से सदा के लिए चली जाऊंगी |
शांतनु – स्वीकार है देवी |
गंगा – चंद्रमा अस्त होने वाले हैं आर्यपुत्र और सूर्य उदित होने वाले हैं आप चुपचाप बैठे क्या देखे जा रहे हैं |
शांतनु – हम वह क्षैतिज देख रहे हैं जहां चन्द्रमा अस्त हुए हैं और जहां से सूर्य उदय होने वाले हैं | तुम्हारी ये आंखे हमारा वर्तमान यही अस्त हुआ और हमारा भविष्य यही से उदय होगा | जीवन में आज पहली बार यह जी चाह रहा है | कि हम कभी क्यों ना हुए |

हम तो केवल खंडो वाणों और रणभूमि की भाषा ही सीखते रहे | यदि हमने श्रंगार की भाषा भी सीखी होती | तो हम तुम्हें बताते प्रिय कि तुम्हारी आंखें कितनी गहरी हैं | होंठ जैसे कचनार और थक के वन में आ गए | हमें संभालो गंगे | हमें तैरना नहीं आता | हम इन नैनो के अथाह सागर में डूबते जा रहे हैं | और आश्चर्य की बात तो यह है कि डूबना हमें अच्छा लग रहा है और हम उबरना नहीं चाहते |
mahabharat episode-1(seasoin-2)
गंगा – इन नैनो में राज्य और राजनीति नहीं है | आर्यपुत्र लोग कहेंगे कि गंगा ने उनसे हस्तिनापुर का राजा छीन लिया |
शांतनु – अभी हम राज्य और राजनीति के विषय में सोचाना नहीं चाहते थे प्रिय |
गंगा – क्यों आर्यपुत्र |
शांतनु – क्योंकि हम गंगा स्नान कर रहे हैं |
सेनापति – समझ नहीं आ रहा है कि महाराज को क्या हो गया है |
महामंत्री – अरे सेनापति जी आप अपने माथे की धूल को पोंछ तो डालिए |
सेनापति – किसी को चिंतित रहना अच्छा नहीं लगता महामंत्री जी लेकिन सेनापति चिंता ना करें | तो क्या करें |जिसे महीनों बीत गए अपने महाराज के दर्शन किए हुए और वह तो ऐसा लगता है | जैसे वो तो हस्तिनापुर को भुला चुके हो
महामंत्री – आप जैसे सेनापति के होते हुए उन्हें हस्तिनापुर की ओर से चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है कानपुर के सुरक्षित है ही इन दिनों वह अपने गर्दे की सीमाओं को सुरक्षित करने में लगे हुए हैं |
सेनापति – परंतु राजा का दायित्व तो |
महामंत्री – फिर वही राजा भी तो एक मनुष्य ही होता है सेनापति ही आनंद पर उसका अधिकार है प्रजा के किसी व्यक्ति से कम तो नहीं राजा प्रजा की आनंद की सुरक्षा करता है | तो क्या प्रजा का यह कर्तव्य नहीं है कि वह राज्य के आनंद की सुरक्षा करें यदि राजा सुखी ना होगा तो प्रजा के सुख को समझ पाएगा और ना ही उनकी रक्षा कर पाएगा |इसलिए उन्हें अपने आनंद की गंगा में स्नान करने दीजिए सेनापति जी
mahabharat episode-1(seasoin-2)
सेनापति – परंतु कब तक महामंत्री जी |
महामंत्री – जब तक वह अपनी आनंद सागर से निकलना ना चाहे तब तक |
सेनापति – पर वह दिन कब आएगा |
महामंत्री – आप चिंता ना करें सेनापति जी विवाहित जीवन का रस आवश्यक है उसके बिना जीवन संपूर्ण नहीं होता आप युवराज के जन्म की प्रतीक्षा कीजिए उनके जन्म लेते ही महाराज को इस आनंद सागर से तैरकर निकलना आ जाएगा | लीजिए वह दिन आ गया |
- सेनापति क्यों(why) चिंतित है ?
दासी – महाराज महाराज की जय हो राजकुमार के जन्म की बधाई हो महाराज |
महाराज – तुमने देखा उसे |
दासी – देखा महाराज |
महाराज – रंग कैसा है |
दासी – जैसे दूध में हल्का सा गुलाल मिला दिया हो महाराज |
महाराज – आंखें कैसी है उसकी |
दासी – चंद्रवंशी राजकुमारों जैसी महाराज महाराज की जय हो |
समय – यदि मैं समय ना होता तो जो दृश्य मैंने अभी-अभी देखा है उसे देखकर मेरी आंखें पथरा गई होती परंतु हस्तिनापुर नरेश शांतनु के पास मेरी आंखें नहीं है ना वह तो केवल एक पिता है उनका दुख हुआ हिर्दय किसी प्रकार उस सत्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं जो उन्हें स्वयं की आंखों ने दिखाया की स्वयं मां ने अपने पहले पुत्र को जन्म लेते ही नदी में बहा दीया शांतनु मौन रहने के लिए वचनबद्ध थे गंगा उनके मौन को अपनी मुस्कान से चुनौती देती चली गई परंतु मैं तो समय हूं मैं तो शांतनु के दूसरे पुत्र का भविष्य भी जानता हूं |
mahabharat episode-1(seasoin-2)
राजगुरु – महाराज इतनी रात गए महाराज |
महाराज – मैं अंधकार के ऐसे दलदल में फंस गया हूं राजगुरु की दिन और रात का अंतर ही भूल गया हूं दिन भी रात जैसे ही काटे हैं |
राजगुरु – यदि मनुष्य अपनी आंखें बंद कर लेगा तो उसे अंधकार के अतिरिक्त और कुछ भी दिखाई नहीं दे सकता महाराज इसलिए आंखें खोलिए और देखिए सूर्य अपने समय के अनुसार उदय भी होता है और अस्त भी चंद्रमा वैसे ही निकलता है वैसे ही अपने शीतल प्रकाश की वर्षा करता है प्रकाश तो आत्मा में है महाराज और आत्मा के बिना कुछ भी संभव नहीं |
महाराज – तो फिर यह प्रकाश मुझे दिखाई क्यों नहीं देता राजगुरू |
राजगुरू – संभवतः आप उसे देखने का प्रयत्न नहीं कर रहे महाराज ये अंधकार आपकी कोई समस्या है महाराज और समस्याएं जूझने के लिए होती हैं |
महाराज – यही तो वह कठिनाई है राजगुरु के मैं चाह कर भी समस्या से जूझ नहीं सकता |
राजगुरु – ऐसी क्या समस्या है महाराज |
महाराज – महारानी मेरे दो पुत्रों की हत्या कर चुकी हैं और मैं देखते रहने की शिवाय कुछ ना कर सका
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राजगुरु – क्यों महाराज |
महाराज – क्योंकि मैं वचनबद्ध हूं |
राजगुरु – आप वचन बद्ध हैं कि महारानी आप के पुत्रों की हत्या करती जाए और आप चुप रहे आप राज राजा हैं हसनापुर नरेश हैं आपको ऐसा वचन देने का अधिकार ही नहीं था जो वचन न्याय के आड़े आ जाए महाराज वो वचन नहीं श्राप है \ (mahabharat episode-1 part 1(seasoin-2))
महाराज – मैं वही श्राप तो जी रहा हूं राजगुरू |
राजगुरू – आप इसे जीना कहते हैं राजन तो फिर आप मरना किसे कहेंगे क्योंकि जो राजा अपने पुत्रों के जीवन की रक्षा नहीं कर सकता वह अपनी प्रजा के जीवन की रक्षा क्या करेगा मैं प्रार्थना करूंगा | कि भगवान् हस्तिनापुर को आप की दुर्बलता से बचाए क्या आपको यह अन्याय दिखाई नहीं देता राजन |
महाराज – वो शांतनु जो हस्तिनापुर का राजा है उसे यह अन्याय दिखाई दे रहा है राजगुरू |
राजगुरू – तो हस्तिनापुर नरेश इस अन्याय को रोकते क्यों नहीं |
महाराज – क्योंकि वह शांतनु जो एक व्यक्ति है वह राजा का हाथ पकड़ लेता है |
राजगुरु – राजा केवल राजा ही होता है व्यक्ति बनने का उसे कोई अधिकार ही नहीं आपका जीवन जन समुदाय के लिए है ऐसा वचन देकर आपने राज्य धर्म को भंग किया |
महाराज – मैं तो आप से सहायता मांगने के लिए आया था राजगुरू |
राजगुरू – राजा मांगता हुआ अच्छा नहीं लगता राजन |
महाराज – तो फिर मैं क्या करू |
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राजगुरु – आप अपने इस वचन की अग्नि में जलिये यही आपका भाग्य है और यही आप का प्रायश्चित भी लांछन और व्यंगों की माहो मास है ये और स्वयं अपनी सहायता करके अग्नि के सागर से बाहर निकल आइए आपकी इसी दुर्बलता से ही शक्ति का कोई न कोई अंकुर आवश्यक फूटेगा |
प्रजा –
- अरे भैया सुना है |
- सुना तो सही भैया पर मानने को मन नहीं करता नदी चाहे गंगा दीदी क्यों ना हो पर कोई मां अपने बच्चों को इस तरह बहा सकती है |
मां तो स्वयं ममता की गंगा होती है |
- भैया लगता है महारानी कोई विशिष्ट मां है |
मां के ऐसे लक्षण तो नहीं होते कि एक एक करके तीनो को बहा चुकी है |
- भैया राजमहल का कोई समाचार सुनाओ |
समाचार तो वही है चौथा राजकुमार जन्म- जन्मा है महाराज की दशा देखी नहीं जाती |
- अजी दशा क्या कोई बच्चे अकेले महारानी के थोड़ी हैं फिर महाराज उनसे कुछ पूछते क्यों नहीं अगर यही हाल रहा तो महाराज के हाथ से वंश की रेखा ही जाती रहेगी |
- बात तो सही है यदि महाराज आज चुप चुप लगा गए तो समझो चौथा कुमार भी गया |
महामंत्री – महाराज
महाराज – इस समय महामंत्री
महामंत्री – मैं चौथे राजकुमार की मृत्यु का शोक प्रकट करने आया था महाराज
महाराज – आप भूल से हत्या को मृत्यु कह गए महामंत्री
महामंत्री – परंतु यह हत्याएं हैं महाराज तो न्यायमूर्ति अधिराज महाराज ने अब तक अपराधी को मृत्युदंड क्यों नहीं दिया अपराधी को मृत्युदंड मिलना है यह सिद्ध करता है कि यह हत्या नहीं है
mahabharata episode-1 part 1
महाराज – क्या आप इस व्यंग को उचित समझते हैं महामंत्री
महामंत्री – तो फिर आप महारानी से पूछते क्यों नहीं महाराज यह स्त्री कौन है महाराज जिसे अपने आपने हमारी महारानी बना दिया हैस्त्री में स्त्री के 3 गुणों में से 1 गुण भी नहीं ना चेतना ना प्रेरणा ना गुस्सा यदि आप पति के नाते नहीं पूछ पा रहे तो राजा के नाते पूछिए क्योंकि राज्य को युवराज देना भी तो आपका ही करता भी है महाराज
महाराज – यदि मैं पूछ सकता महामंत्री तो आज आपको यहां मेरे 4 पुत्र की हत्या पर शोक प्रकट करने के लिए ना आना पड़ता है और सबसे बड़े दुख की बात यह है कि यदि मेरा पांचों पुत्र हुआ तो उसका भाग्य भी हमारा दुर्भाग्य ही होगा